देश की समस्याएँ

भारत में कई समस्याएँ घिरी हुई हैं, एक तरफ़ कश्मीर पे पाकिस्तानी जिहादियों का आक्रमण चलता ही जा रहा है, कभी किसी जवान का सर काट के ले जाता है तो कभी घुसपैठ, तो कभी आतंकियों को पाकिस्तान अधिशासित कश्मीर में ट्रेनिंग देकर भारत भेजा जाता है। तो हैदराबाद में अकबरउद्दीन ओवैसी खुलेआम भाषण देते हैं कि वे मुसलमान भारत के सभी हिन्दुओं को मारने के काबिल हैं, और मीडिया इस बात को छिपा देती है। पूर्व भारत की ओर तो और भी मुसीबतें हैं, बंगलादेश से मुसलमान घुसपैठ लगातार असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा तथा मेघालय में हो रहे हैं अवैध रूप से। भारत से अवैध रूप से भारत के प्राकृतिक सम्पदा को चीन बंगलादेश और म्यांमार में भेज दिया जाता है। कुछ दिनों पहले तो खबर सुर्ख़ियों में था कि कर्नाटक में कहीं किसी ने पाकिस्तान का झण्डा फेहराया है! तो हैदराबाद में तिरंगे को खुलेआम जलाया गया ओवैसी के समर्थकों ने उसके गिरफ्तारी पर।

हमारे प्रधानमंत्री अपने आप को एक बड़े अर्थशास्त्री मानते हैं, पर देखने को तो यही मिलता है कि देश में गरीबों की संख्या घटने के बजाय घटती ही जा रही है। किसान हर साल आत्महत्या करते हैं, क्योंकि वे अपना कर्ज़ अदा नहीं कर पाते हैं, और प्रधानमंत्री जी कर्ज़ माफ़ी की बात किस मूँह से करते हैं? देश में हर दिन कई लोग भूखे सोते हैं और देखिए तमाशा एक तरफ़ अनाज खुले में सड़ता है क्योंकि सरकार के पास पैसे नहीं हैं इनको रखने लायक जगह बनाने के लिए, तो दूसरी ओर करोड़ों खर्चा किये जाते हैं एक आतंकी तो बिरयानी खिलने के लिए!

देश की अर्थव्यवस्था दिन के दिन कमज़ोर पडती जा रही है, और देश के अर्थशास्त्री विदेशी निवेश को बढ़ाकर देश को लूटने दे रहे हैं। जहाँ एक ओर कई व्यापारियों का व्यवसाय बर्बाद हो रहा है, वहीं विदेशी लुटेरे अमीर बनते जा रहे हैं। देश के लोगों को रात बिताने को छत नहीं मिल रहा है तो कोई शाहरुख दुबई में करोड़ों का मकान बना रहा है।

देश का पैसा विदेशियों को सौंपने में भारत में रह रहे जनता का भी योगदान है, बीएसएनएल के बजाय वोडाफोन जैसे विदेशी कम्पनियों पे भरोसा करेंगे, उनको पैसे देंगे। और करें भी तो क्या भला हमारी अपंग सरकार, भारतीय संचार निगम के सेवा में कोई खास उन्नयन ही नहीं करती। अब इन बातों को समझाएं भी तो किसे? जनता को? उस जनता को जो तरक्की से ज़्यादा क्रिकेट के पीछे दीवाना है? उस जनता को जो सचिन तेन्दुलकर को भारत रत्न देने को उतावला है?

एक तरफ़ तो देखिए मिड-डे मील के योजना से कई शिक्षकों को फायदा मिल रहा है, वेतन के साथ उनको अधिक रूपए मिल रहे हैं बोनस के तौर पर जो कि असलियत में दिए गए थे बच्चों को मुफ़्त अच्छा पोषक खाना खिलाने के लिए। सबकुछ ऐसा ही चलता है, इनके खिलाफ़ आवाज़ उठाता कौन है? कोई उठाता भी है तो इंटरनेट पर सिर्फ! और तो और इंटरनेट पर भ्रष्टाचार के बारे में बातें करो तो पुलिस पीछे पड़ जाती है, पर खुलेआम ओवैसी जैसा भाषण दो तो सारे देशवासियों को भी पता नहीं चलता! दूसरी तरफ़ देखिए ओडिसा, छत्तीसगढ़, जहाँ पे विदेशी कम्पनियों के हाथों थाम दिया गया भारत के प्राकृतिक सम्पदा को!

अन्ना हज़ारे? वो गांधीवादी? अनशन करके कोई दुनिया नहीं बदल सकता! देश को अगर बदलना है तो हमें कोई जंग छेड़ना होगा। ऐसा जंग जिससे कि इस भ्रष्टाचारी सरकार के सभी नेताओं को उनकी सही सज़ा दी जा सके। ताकि सभी सिर्फ भारतीय उत्पादों का ही प्रयोग करे, ताकि सभी अपने मातृभाषा में पढाई कर सकें। देशद्रोहियों को फांसी के फंदे तक पहुंचाया जा सके।  कोई भी विदेशी बैंकों में देश का पैसा अवैध रूप से ना रख पाए, गरीबी हटाई जा सके और देश का हर इंसान पढ़-लिख पाए, वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी हो पाए। देश आगे बढ़ पाए!

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